तारीख़ 26 मार्च. दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या पौने पांच लाख पार है. 21 हज़ार से ज़्यादा लोग मर चुके हैं. 780 करोड़ की आबादी है दुनिया में. इनमें करीब एक तिहाई लॉकडाउन हैं. जहां से ये महामारी शुरू हुई, उस चीन के आंकड़े क्या हैं? कुल संक्रमित- 81,285. मरने वाले- 3,287. चीन रिकवरी मोड में है. काम-धंधा शुरू हो गया है. वुहान शहर, इस महामारी की धुरी, वहां भी लॉकडाउन ख़त्म होने को है. ऐसे में कई सवाल गर्म हैं, मसलन-
क्या चीन कोरोना से हुई मौतों की असल संख्या छुपा रहा है? क्या वहां दो करोड़ से ज़्यादा लोग मरे हैं? क्या चीन के ही जारी किए गए आंकड़ों ने उसकी पोल खोल दी है? क्या चीन ने तैयार किया कोरोना? क्या यूरोप और अमेरिका की इकॉनमी ढहाने के लिए उसने ‘कोरोना’ नाम का हथियार तैयार किया?
इस ख़बर में हम इन्हीं सवालों पर बात कर रहे हैं. सवाल उठे कैसे, ये भी बता रहे हैं.
सबसे पहले बारी ‘सिम कार्ड’ रहस्य की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते तीन महीनों में चीन के ‘दो करोड़ दस लाख’ सिम कार्ड गायब हो गए. इनके अलावा, करीब ‘8 लाख 40 हज़ार’ लैंडलाइन भी बंद हो गए. ये आंकड़े दिए चीन की वायरलेस कैरियर कंपनियों ने. वायरलेस कैरियर, माने मोबाइल नेटवर्क देने वाली कंपनियां. जैसे हमारे यहां BSNL, एयरटेल, जियो. वैसे ही वहां हैं तीन कंपनियां. पहली, चाइना मोबाइल लिमिटेड. दूसरी, चाइना यूनिकॉम हॉन्ग कॉन्ग लिमिटेड. तीसरी, चाइना टेलिकॉम कॉर्प लिमिटेड. इनमें पहले वाली- चाइना मोबाइल लिमिटेड इस कैटगरी में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बताई जाती है. साल 2000 से ये कंपनी अपने मासिक आंकड़े जारी कर रही है. तब से पहली बार इसके ग्राहक कम हुए हैं. कितने कम? कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, जनवरी-फरवरी में इसके मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 80 लाख से ज़्यादा घटी. जनवरी-फरवरी में ही ‘चाइना यूनिकॉम हॉन्ग कॉन्ग लिमिटेड’ के करीब 78 लाख ग्राहक कम हुए. ‘चाइना टेलिकॉम कॉर्पोरेशन’ के अकेले फरवरी में ही 56 लाख ग्राहक चले गए.
सिम कार्ड्स के बाहर होने का मतलब क्या निकाल रहे हैं लोग?
ख़बरों के मुताबिक, पिछले तीन महीनों में चीन से 21 मिलियन सिम कार्ड सेवा से बाहर हो गए. 21 मिलियन, माने दो करोड़ दस लाख. ये वही तीन महीने हैं, जिस दौरान कोरोना फैलना शुरू हुआ. ऐसे में लोग इन दोनों बातों को जोड़ रहे हैं. शक जताया जा रहा है कि ये कोरोना से मारे गए लोगों के सिम कार्ड थे. इसका मतलब निकलता है कि चीन ने मारे गए लोगों की संख्या बहुत घटाकर बताई.
मोबाइल लोगों की ‘जासूसी’ का हथियार है
11 फरवरी को चीन ने ‘क्लोज़ कॉन्टैक्ट डिटेक्टर’ नाम का एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया. ये आपसे आपकी पहचान से जुड़े ब्योरे लेता है. फिर आपकी लोकेशन डेटा की हिस्ट्री खंगालता है. बताता है कि क्या आप किसी कोरोना संक्रमित इंसान के संपर्क में आए थे. ये ऐप एक मिसाल है. कि आम दिनों में कैब बुक करने, खाना मंगवाने, ऑनलाइन भुगतान करने जैसी बेहद अहम ज़रूरतों के अलावा महामारी जैसी आपदा में भी मोबाइल फोन कितना काम आता है. न केवल लोगों की सहूलियत के लिए. बल्कि इसकी मदद से सरकार को लोगों पर नज़र रखने में भी मदद मिलती है. चीन के पास अपने लोगों की जासूसी करने, उनपर नज़र रखने का बड़ा विस्तृत सिस्टम है. इसकी मदद से वो लोगों से जुड़े सारे डेटा जमा कर लेता है. इसकी एक मिसाल है दिसंबर 2019 में आया नया नियम. अब वहां सिम खरीदने के लिए पहचान पत्र और पासपोर्ट साइज़ फोटो के अलावा उपभोक्ता के चेहरे को भी स्कैन किया जाता है. ऐसे ही तरीकों से सरकार के पास बहुत सारा डेटा सुरक्षित है. जिसका इस्तेमाल वो अपने हिसाब से करती है.
एकाएक सिम कार्ड गायब होने से पैदा हुआ शक
आप याद कीजिए हॉन्ग कॉन्ग से आई वो ख़बरें. जब सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान पुलिस और सुरक्षाबलों को कैमरा दिया गया. वो प्रदर्शनकारियों की तस्वीर खींचते थे. उन तस्वीरों का डेटा से मिलान होता था. और प्रदर्शनकारी की पहचान कर ली जाती थी. ऐसे सिस्टम में मोबाइल फोन सरकार का मददगार है. लोकतांत्रिक ढांचे में भी. और चीन जैसे तानाशाही सिस्टम में तो और ज़्यादा. वहां डिजिटाइजेशन पर बहुत ज़्यादा जोर होने के पीछे एक कारण ये भी है. ऐसे में एकाएक इतने सिम कार्ड गायब हो जाना सवाल खड़े कर रहा है. ख़ासकर तब, जब दुनिया जानती है कि चीन ने कोरोना पर सबको गुमराह किया है.
ये भी वजह हो सकती है सिम कार्ड बाहर होने की
तमाम अविश्वासों और सवालों के बीच सिम कार्ड गायब होने के पीछे कुछ और व्याख्याएं भी हैं. मसलन, 23 मार्च को आई ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट. इसके मुताबिक, मोबाइल ग्राहकों में आई कमी कोरोना के कारण इकॉनमी को हुआ नुकसान दिखाता है. इन उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा तो शायद दूसरी जगहों से आकर काम करने वाले लोगों का रहा हो. जिनके पास अक्सर दो नंबर होते हैं. एक, जहां के वो होते हैं. दूसरा, जहां वो काम करते हैं. कोरोना के कारण काम-काज ठप्प हो गया. कारखानें, दफ़्तर, निर्माण कार्य रुक गए. ऐसे में बड़ी संख्या में लोग अपने गांवों-शहरों को लौट गए. कई जो नए साल की छुट्टी में घर गए, वो काम पर लौट नहीं सके. काम की अनिश्चितता के बीच उन्होंने शायद अपना दूसरा नंबर बंद कर दिया हो. ये रिपोर्ट कहती है कि कारखाने और बाकी काम-काज फिर सामान्य होने लगे, तो शायद चीजें सुधरें.
‘कोरोना’ को चीन ने बनाया?
इसी कामकाज से निकलती है एक और थिअरी. कोरोना की शुरुआत से ही कई लोग कह रहे हैं. कि चीन कोई रासायनिक प्रयोग कर रहा था. वो शायद कोई कैमिकल हथियार बना रहा था. चीजें गड़बड़ाईं और ये बीमारी फैल गई. वैज्ञानिकों ने अब तक जो पाया है, वो इस थिअरी को खारिज़ करता है. मगर अब ऐसा ही एक नई बात ये चल निकली है कि चीन ने अमेरिका और यूरोप की इकॉनमी ठप करने के लिए कोरोना तैयार किया. इस शक का आधार है कि चीन अब संभलने लगा है. वहां कारखाने खुलने लगे हैं. कोरोना मरीज़ों का इलाज करने के लिए दुनियाभर के डॉक्टरों को मास्क, दस्ताने और बॉडी सूट जैसी चीजें चाहिए. अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों में इनकी किल्लत है. ऐसे में इन्हें चीन की मदद चाहिए. लोग कह रहे हैं, यही चीन चाहता था.
क्या कोरोना से चीन को नहीं हुआ नुकसान?
इस बात में वजन नहीं लगता. इसलिए कि चीन को ख़ुद तगड़ा नुकसान हुआ है. इस तिमाही में उसकी इकॉनमी के नौ फीसद तक गिरने की आशंका है. जनवरी-फरवरी में चीन की खुदरा बिक्री करीब 20.5 फीसद गिर गई. औद्योगिक उत्पादन 13.5 पर्सेंट कम हुआ. पूरी इकॉनमी को सदमा लग गया. 16 मार्च को NYT में छपी एक ख़बर बताती है कि चीन की वो अर्थव्यवस्था जो वैश्विक मंदी और अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर भी झेल गई, उसे शायद कोरोना के कारण हुए नुकसान से उबरने में बहुत वक़्त लग जाएगा. उसके कारखानों को अंगोला और चिले जैसे देशों से आने वाली सप्लाई चाहिए होती है. उसकी सड़कों और इमारतों को ब्राजील-ऑस्ट्रेलिया का लौह अयस्क चाहिए होता है.
चीन ख़ुद क्यों करेगा अपना घाटा?
जब बाहर के देश कोरोना में जकड़े हुए हों, तो कामकाज सामान्य होने में महीनों लग जाएंगे. फिर चीन के बने सामान को बिकने के लिए बाज़ार भी तो चाहिए. चांदनी चौक का दुकानदार, जिसकी खिलौने की दुकान में बमुश्किल 500 खिलौने होंगे, वो भी फरवरी में खाली दुकान दिखाकर शिकायत कर रहा था कि चीन से माल नहीं आ रहा. अब चीन की खिलौना फैक्टरी में सामान बनने भी लगे, तो कोरोना लॉकडाउन में चांदनी चौक की वो दुकानें बंद हैं. नुकसान उस कारखाने वाले और उस दुकान वाले, दोनों का ही है. ऐसा तो हुआ नहीं कि यूरोप-अमेरिका गर्त में गए हों और चीन बच गया हो? ऐसे में मास्क, दस्ताने और मेडिकल सप्लाई भेजकर मुनाफ़ा कमाने के लिए चीन अपना इतना बड़ा नुकसान क्यों करेगा?
चीन की ‘कोरोना कूटनीति’
हां, मगर मास्क और बाकी मेडिकल सप्लाई में एक दिलचस्प ऐंगल ज़रूर है. कई जानकार इसे कोरोना बाद की उसकी ‘मास्क कूटनीति’ कह रहे हैं. कोरोना के कारण चीन के नाम को बहुत बट्टा लगा है. ट्रंप समेत कई लोग कोरोना को ‘चाइनीज़ वायरस’ कह रहे हैं. अभी देखिए. दुनिया के मक्खन देशों के संगठन ‘G-7’ में क्या हुआ. वहां अमेरिका जोर दे रहा है कि कोरोना को ‘वुहान वायरस’ बुलाया जाए. बाकी कई देश इसके लिए राज़ी नहीं हैं. इस चक्कर में वो एक साझा बयान नहीं जारी कर सके.
मास्क और मेडिकल सप्लाई बांट रहा है चीन
ऐसे में चीन कोरोना से जूझ रहे कई देशों को लाखों-लाख मास्क और बाकी ज़रूरी मेडिकल सप्लाई भेज रहा है. उसने इटली में अपने डॉक्टर भेजे. उन्हें मेडिकल सहायता दी. सर्बिया को मास्क और बाकी ज़रूरी चीजें भेजीं. फिलिपीन्स को एक लाख कोरोना टेस्ट किट दिए. लाइबेरिया को मास्क और डॉक्टरी सूट भेजे. पिछले हफ़्ते करीब 10 विमान भरकर मेडिकल सप्लाई तो अकेले चेक रिपब्लिक भेजी उसने. कोरोना से लड़ने के लिए उसने करीब 150 करोड़ रुपये दिए हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन को. इसी कड़ी में ‘अलीबाबा’ वाले जैक मा का भी ऐलान आया. कि वो स्पेन, इटली, बेल्जियम और फ्रांस समेत पूरे यूरोप में करीब बीस लाख मास्क बांटेंगे.
क्या असर हुआ चीन की मदद का?
चीन एक तो मदद करके भलमनसाहत कमा रहा है. ये भी साबित करने की कोशिश कर रहा है कि वो जिम्मेदार वर्ल्ड लीडर है. ऊपर से वो ये भी दिखाने की कोशिश कर रहा है कि देखो, कोरोना से निपटना कितना मुश्किल है. इस तरह वो कोरोना पर दिखाई गई अपनी नाकामियों से पार पाना चाह रहा है. अब देखिए. सर्बिया के राष्ट्रपति अलेक्जांडर वूचीच यूरोपियन यूनियन पर नाराज़ हैं और चीन की तारीफ़ कर रहे हैं. उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग को अपना भाई कहा. और, यूरोपियन एकता को झूठी परीकथा बताया. ये चीन की ‘मास्क डिप्लोमसी’ है.
अंत पर जाने से पहले फिर उस सिम कार्ड रहस्य पर लौटते हैं. 21 मिलियन बहुत बड़ी संख्या है. इतने लोग मारे गए, ये आशंका सही नहीं लगती. हां, ये ज़रूर लगता है कि चीन ने आंकड़े छुपाए हैं. पूरी जानकारी नहीं रखी है दुनिया के सामने. अगर वो कोरोना पर पारदर्शिता बरतता, तो शायद दुनिया इस आपदा से निपटने की बेहतर तैयारी कर पाती. शायद तब इतना नुकसान नहीं हुआ होता.
‘कन्सपिरेसी थिअरी’ यानी साज़िश खोजने वाली गप्पों में कइयों को बहुत आनंद आता है. UFO और एलियन. गुप्त सुरंगें. अमेरिकी सरकार का सीक्रेट और एरिया 51. इंसानी बच्चा देने वाली बकरी. एनाकोंडा फिल्म वाला ब्लड ऑर्किड. इंटरनेट पर इस तरह का बहुत सारा माल-मसाला भरा है. सप्लाई है, क्योंकि डिमांड है. बहुतेरे लोगों को ऐसी चीजों में बहुत रस मिलता है. मगर हम तो तथ्य पर चलते हैं. तो जब तक विज्ञान न कह दे कि चीन ने प्रयोगशाला में कोरोना विषाणु बनाया, हम यही मानेंगे कि कोरोना का सोर्स चीन की कोई अंधेरी गुफा थी. जहां लटके किसी चमगादड़ को शायद किसी और जीव ने खाया. और वो बेचारा जीव किसी ऐसे के हाथ लगा, जो उसे वुहान के सीफूड मार्केट में बेचने लाया. और वहीं से चमगादड़ों में पाया जाने वाला कोरोना विषाणु इंसानों के अंदर आया.
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